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Manohar Parrikar : Man of Simplicity and Honesty

सादगी और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति मनोहर पर्रीकर... 


सुबह के लगभग छह बजने वाले थे, पणजी के मुख्य मार्गों पर इक्का-दुक्का वाहन चल रहे थे. अधिकाँश गोवा निवासी उस समय भी नींद में ही थे. परन्तु हमेशा की आदत के अनुसार एक स्कूटर सवार अपने ऑफिस जा रहा था. बीच-बीच में उसकी नज़र अपनी कलाई घड़ी पर चली जाती थी, क्योंकि उस व्यक्ति को प्रतिदिन की अपेक्षा आधा घंटा देर हो गई थी. सुबह के छः बजे भी पणजी के सभी मुख्य चौराहों के ट्रैफिक सिग्नल चालू थे. स्कूटर सवार जैसे ही एक चौराहे पर पहुँचा, लाल बत्ती से उसका सामना हो गया. मन ही मन हल्का सा चिढ़ते हुए उसने अपना स्कूटर रोक दिया. उसी समय एक आलीशान बड़ी सी कार भी उस स्कूटर के पीछे आ रही थी. रास्ते पर एक भी गाड़ी न होने के बावजूद इस स्कूटर सवार को अपने आगे ब्रेक मारते देखकर वह बड़ी कारवाला गड़बडा गया. उसने भी स्कूटर के पीछे जोर से ब्रेक मारे और गुस्से में कार से उतरकर कोंकणी भाषा में बोला, “कित्यां थाम्बलो रे?” (क्यों रुक गया रे?). स्कूटर वाले ने शान्ति से जवाब दिया, “सिग्नल बघ मरे” (लाल सिग्नल देखो”)... यह सुनकर कार सवार धनवान का पारा और चढ़ गया, “बाजू हो, तुका माहित असा मिया कोण असंय ता? मी पणजी पोलीस स्टेशन च्या PI चो झील” (अपनी स्कूटर बाजू कर, तुझे पता नहीं मैं कौन हूँ, मैं पणजी पुलिस स्टेशन का इंस्पेक्टर हूँ”). स्कूटर सवार ने फिर भी शान्ति से ही जवाब दिया, “अस्से? मग तुझ्या बापसाक जाऊन सांग की माका गोव्याचो मुख्यमंत्री भेटलो होतो”. (ऐसा क्या? तो अपने बाप से जाकर कहो कि आज मुझे गोवा का मुख्यमंत्री मिला था). भौंचक्का कार वाला उस स्कूटर सवार के पैर पकड़ने लगा, लेकिन उसे रोकते हुए स्कूटर सवार ने सिर्फ इतना कहा कि, “सिग्नल और नियम का पालन किया करो” और वह अपने दफ्तर की ओर निकल गया. 



गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत के वर्तमान रक्षामंत्री मनोहर गोपालकृष्ण पर्रीकर की सादगी के ऐसे कई किस्से गोवा में प्रसिद्ध हैं. सादगी और ईमानदारी का ढोंग करने वाले कई नेता भारत ने देखे हैं, परन्तु यह गुण पर्रीकर के खून में ही है, उसमें रत्ती भर का भी ढोंग या पाखण्ड नहीं है.गोवा में ऐसे कई लोग मिलेंगे जिन्होंने अनेक बार सुबह छः बजे किसी ठेले पर चाय पीते अथवा रात ग्यारह बजे किसी सामान्य से रेस्टोरेंट में अकेले खड़े नाश्ता करते हुए मनोहर पर्रीकर को देखा है. मुख्यमंत्री रहते हुए भी पर्रीकर कभी भी शासकीय आवास में नहीं रहे, और शासकीय गाड़ी का उपयोग भी आवश्यकता होने पर ही करते रहे. वे अपने बड़े बेटे के साथ 2BHK के उस फ़्लैट में रहते थे, जिसकी EMI वे आज भी भरते हैं. 



म्हापसा के एक गौड़ सारस्वत परिवार में मनोहर पर्रीकर का जन्म हुआ. बचपन से ही उन के मन पर RSS के संस्कार पड़े. पर्रीकर आज भी गर्व से संघ में बिताए उन दिनों को स्मरण करते हैं. उच्च शिक्षा के लिए पर्रीकर का चयन IIT मुम्बई में हुआ. उनकी ईमानदारी का एक किस्सा IIT के दिनों का है, उनके मित्र बताते हैं कि एक बार सुबह चार बजे पर्रीकर अपने मित्र के साथ कल्याण से दादर स्टेशन जाने के लिए स्टेशन पहुँचे, लेकिन टिकिट खिड़की का कर्मचारी गहरी नींद में था. उसे उठाने का काफी प्रयास किया परन्तु अंततः उन्हें बिना टिकट दादर जाना पड़ा. दादर में टिकट चेकर ने दोनों को पकड़ लिया और पर्रीकर से बीस पैसे टिकट के और चालीस पैसे दण्ड के अर्थात साठ पैसे वसूल किए. पर्रीकर को बहुत क्रोध आया, वे तो टिकट लेना चाहते थे, शासकीय कर्मचारी की गलती थी. उनकी कोई गलती नहीं होते हुए भी उन्हें दण्ड भरना पड़ा था इस कारण उन्होंने निश्चय किया कि बदले में वे भी सरकार का नुक्सान करेंगे. अगले बारह-पन्द्रह दिन तक लगातार वे बिना टिकट दादर गए. अचानक उन्होंने हिसाब लगाया तो पाया कि उन्होंने सरकार को दो रूपए ज्यादा का चूना लगा दिया है. मन ही मन उन्हें अपराधी भावना होने लगी.वे तुरंत पोस्ट ऑफिस गए और दो रूपए का डाक टिकट खरीदा और फाड़कर फेंक दिया. तब उन्हें यह समाधान हुआ कि अब सरकार से उनका “हिसाब बराबर” हुआ है. एक मुख्यमंत्री के रूप में भी पर्रीकर हमेशा अपने नियमों, अनुशासन एवं ईमानदारी के प्रति एकनिष्ठ बने रहे. 


IIT पास करके मनोहर वापस गोवा आए, एक छोटा सा उद्योग आरम्भ किया और साथ ही संघ का कार्य भी देखते रहे. उन दिनों गोवा में भाजपा का नामोनिशान तक नहीं था. सिर्फ दो अर्थात, काँग्रेस और गोमांतक पार्टी की जनता पर पकड़ थी. ऐसी परिस्थिति में संघ के कार्यकर्ताओं के सहारे पर्रीकर ने राजन आर्लेकर, लक्ष्मीकांत पार्सेकर, श्रीपाद नाईक जैसे युवाओं के साथ मिलकर सिर्फ पन्द्रह वर्षों में भाजपा को सत्ता की सीढ़ी तक पहुँचा दिया. 2012 के चुनावों में उनके नेतृत्त्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल की. अपनी दूसरी पारी में मुख्यमंत्री बनते ही पर्रीकर ने दो महत्त्वपूर्ण निर्णय किए. उन्होंने सबसे पहले गोवा में चल रहे अवैध खनन को पूरी तरह बन्द कर दिया और पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला 20% टैक्स घटाकर सिर्फ 0.2% कर दिया. गोवा में पेट्रोल बीस रूपए सस्ता हो गया.इस निर्णय की बहुत आलोचना हुई और सरकार को होने वाली राजस्व नुक्सान की भरपाई कैसे होगी इस पर दिल्ली तक चर्चा होने लगी. यह सवाल उठाया जाने लगा कि क्या गोवा सरकार दिवालिया होने की कगार पर है? लेकिन पर्रीकर के पास पूरी योजना तैयार थी. सबसे पहले उन्होंने डाबोलिम अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर विमानों को लगने वाले “व्हाईट पेट्रोल” से भी कर घटा दिया. इसके बाद उन्होंने विमान कंपनियों से आग्रह करके उनके किराए में भारी कमी करवाई, ऐसा करते ही पहले से लोकप्रिय गोवा में देशी-विदेशी पर्यटकों की मानो बाढ़ आ गई. इसके बाद उन्होंने गोवा के सभी कैसीनो पर टैक्स बढ़ा दिया, जिससे राजस्व की भरपाई आराम से हो गई. पर्रीकर कहते हैं कि मैं गोवा की जनता का ट्रस्टी हूँ और ऐसे में सरकार अथवा जनता का नुक्सान मेरा व्यक्तिगत नुक्सान है. इसलिए जनता का कोई भी नुक्सान हो पाए, ऐसा कोई निर्णय मैं लेने वाला नहीं हूँ, और गोवा की जनता भी पर्रीकर के इन शब्दों पर पूरा भरोसा करती है.पिछले तीन वर्ष में गोवा के प्रशासन से भ्रष्टाचार बहुत-बहुत कम हुआ है. गोवा की छोटी-छोटी गलियों में भी साफ़-सुथरे और चमकदार रास्ते और बिजली की स्थिति देखकर भरोसा कायम होता है. 



अलग-अलग तरीकों से मनोहर पर्रीकर को रिश्वत देने की कोशिशें भी हुईं, लेकिन उनका कठोर व्यक्तित्त्व और स्पष्ट वक्ता व्यवहार के कारण उद्योगपति इसमें सफल नहीं हो पाते थे और पर्रीकर के साथ जनता थी, इसलिए उन्हें कभी झुकने की जरूरत भी महसूस नहीं हुई. एक बार पर्रीकर के छोटे पुत्र को ह्रदय संबंधी तकलीफ हुई. डॉक्टरों के अनुसार जान बचाने के लिए तत्काल मुम्बई ले जाना आवश्यक था. उस समय गोवा का एक उद्योगपति उन्हें विमान से मुम्बई ले गया. चूँकि पर्रीकर के बेटे को स्ट्रेचर पर ले जाना था, इसलिए विमान की छह सीटें हटाकर जगह बनाई गई और उसका पैसा भी उस उद्योगपति ने ही भरा. पर्रीकर के बेटे की जान बच गई. उस उद्योगपति के मांडवी नदी में अनेक कैसीनो हैं और उसमें उसने अवैध निर्माण कर रखे थे. बेटे की इस घटना से पहले ही पर्रीकर ने उसके अवैध निर्माण तोड़ने के आदेश जारी किए हुए थे. उस उद्योगपति ने सोचा कि उसने पर्रीकर के बेटे की जान बचाई है, इसलिए शायद पर्रीकर वह आदेश रद्द कर देंगे.काँग्रेस को भी इस बात की भनक लग गई और वह मौका ताड़ने लगी, कि शायद अब पर्रीकर जाल में फंसें. लेकिन हुआ उल्टा ही. पर्रीकर ने उस उद्योगपति से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि एक पिता होने के नाते मैं आपका आजन्म आभारी रहूँगा, परन्तु एक मुख्यमंत्री के रूप में अपना निर्णय नहीं बदलूँगा. उसी शाम उन्होंने उस उद्योगपति के सभी अवैध निर्माण कार्य गिरवा दिए और विमान की छः सीटों का पैसा उसके खाते में पहुँचा दिया.पढ़ने में भले ही यह सब फ़िल्मी टाईप का लगता है, परन्तु जो लोग पर्रीकर को नज़दीक से जानते हैं, उन्हें पता है कि पर्रीकर के ऐसे कई कार्य मशहूर हैं. चूँकि भारत की मीडिया गुडगाँव और नोएडा की अधिकतम सीमा तक ही सीमित रहती है और टेबल पर बैठकर “दल्लात्मक” रिपोर्टिंग करती है, इसलिए पर्रीकर के बारे में यह बातें अधिक लोग जानते नहीं हैं. 



58 वर्षीय मनोहर पर्रीकर आज भी सोलह से अठारह घंटे काम करते हैं. गोवा के मुख्यमंत्री रहते समय मुख्यमंत्री कार्यालय के कर्मचारियों को साँस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती थी. एक बार पर्रीकर अपने सचिव के साथ रात बारह बजे तक काम कर रहे थे. जाते समय सचिव ने पूछा, “सर, यदि कल थोड़ी देर से आऊँ तो चलेगा क्या?”, पर्रीकर ने कहा, “हाँ ठीक है, थोड़ी देर चलेगी, थोड़ी देर यानी सुबह साढ़े छः तक आ ही जाना”. सचिव महोदय ने सोचा कि वही सबसे पहले पहुँचेंगे, लेकिन जब अगले दिन सुबह साढ़े छः बजे वे बड़ी शान से दफ्तर पहुँचे तो चौकीदार ने बताया कि पर्रीकर साहब तो सवा पाँच बजे ही आ चुके हैं. ऐसे अनमोल रतन की परख करके नरेंद्र मोदी नामक पारखी ने उन्हें एकदम सटीक भूमिका सौंपी है, वह है रक्षा मंत्रालय.पिछले चालीस वर्षों में दलाली और भ्रष्टाचार (अथवा एंटनी के कार्यकाल में अकार्यकुशलता एवं देरी से लिए जाने वाले निर्णयों) के लिए सर्वाधिक बदनाम हो चुके इस मंत्रालय के लिए मनोहर पर्रीकर जैसा व्यक्ति ही चाहिए था. यह देश का सौभाग्य ही है कि पर्रीकर जैसे क्षमतावान व्यक्ति के सुरक्षित हाथों में रक्षा मंत्रालय की कमान है.  

जिस समय पर्रीकर को शपथविधी के लिए दिल्ली आमंत्रित किया गया था, उस समय एक “सत्कार अधिकारी” नियुक्त किया गया. जब अधिकारी ने पर्रीकर से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, “आपको एयरपोर्ट पर आने की जरूरत नहीं, मैं खुद आ जाऊँगा”. जब होटल के सामने ऑटो रिक्शा से सादे पैंट-शर्ट में “रक्षामंत्री” को उतरते देखा तो दिल्ली की लग्ज़री लाईफ में रहने का आदी वह अधिकारी भौंचक्का रह गया



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