Quantcast
Channel: महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 168

Arvind Kejriwal - A Crusader or Something Else??

$
0
0

अरविन्द केजरीवाल : एक योद्धा या एक मोहरा?


जब किसी कम्पनी के सारे उत्पाद एक-एक करके मार्केट में फ़ेल होने लगते हैं और कम्पनी का मार्केट शेयर गिरने लगता है, तथा उसकी साख खराब होने लगती है, साथ ही जब उसकी प्रतिद्वंद्वी कम्पनी के मार्केट में छा जाने की संभावनाएं मजबूत होने लगती हैं, तब ऐसी स्थिति में वह कम्पनी क्या करती है? अक्सर ऐसी स्थिति में दो-तरफ़ा मार्केटिंग और मैनेजमेण्ट की रणनीतिके तहत 1) किसी तीसरी कम्पनी को अधिग्रहीत कर लिया जाता है, और नए नामों से प्रोडक्ट बाज़ार में उतार दिए जाते हैं और 2) इस नई कम्पनी के ज़रिए, यह बताने की कोशिश की जाती है कि, प्रतिद्वंद्वी कम्पनी के उत्पाद भी बेकार हैं। 

एक प्रसिद्ध विचारक ने कहा है कि “…If you could not CONVINCE them, CONFUSE them…” अर्थात यदि तुम सामने वाले को सहमत नहीं कर पाते हो, तो उसे भ्रम में डाल दो…आप सोच रहे होंगे कि Arvind Kejriwal की तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम(?) का इस मार्केटिंग सिद्धांत से क्या सम्बन्ध है? यदि पिछले कुछ माह की घटनाओं और विभिन्न पात्रों के व्यवहार पर निगाह डालें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि अरविन्द केजरीवाल, इसीनई तीसरी कम्पनीके रूप में उभरे हैं, जो कि वास्तव में कांग्रेस नामक कम्पनी का ही बाय-प्रोडक्टहै। इसे सिद्ध करने के लिए पहले हम घटनाक्रमों के साथ-साथ इतिहास पर भी आते हैं…

      अधिक पीछे न जाते हुए हम सिर्फ़ दो मोहरोंके इतिहास को देखेंगे… पहला है पंजाब में जरनैल सिंह भिंडराँवाले और दूसरा है महाराष्ट्र में राज ठाकरे (Raj Thakre)…। पाठकों को याद होगा कि जब पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने अपने राजनैतिक अभियान के तहत कांग्रेस के खिलाफ़ अकाली दल को खड़ा किया, और उसकी लोकप्रियता रातोंरात बढ़ी, तब इन्दिरा गाँधी की नींद उड़ना शुरु हो गई थी।कांग्रेस ने (अर्थात इंदिरा गाँधी ने) पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरांवाले को समर्थन और मदद देना शुरु किया, ताकि अकाली दल से मुकाबला किया जा सके। इस चाल में कामयाबी भी मिली और अकाली दल दो-फ़ाड़ हो गया, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में भी दरार पड़ गई और धीरे-धीरे भिंडरांवाले सर्वेसर्वा बनकर काबिज हो गए। भिंडराँवाले के कई कार्यों और सम्पर्कों की तरफ़ से जानबूझकर आँख मूंदे रखी गई, परन्तु इसकी आड़ में कांग्रेस को धता बताते हुए खालिस्तान आंदोलन मजबूत हो गया। हालांकि आगे चलकर कांग्रेस को इस चालबाजीऔर घटिया राजनीति का खामियाज़ा इन्दिरा गाँधी की जान देकर चुकाना पड़ा, परन्तु इस लेख का मकसद पंजाब की राजनीति में जाना नहीं है, बल्कि कांग्रेस द्वारा मोहरेखड़े करने की पुरानी राजनीति को बेनकाब करना है।

      ठीक भिंडरांवाले की ही तरह महाराष्ट्र के मुम्बई में शिवसेना के दबदबे को तोड़ने के लिए राज ठाकरे की महत्त्वाकांक्षाओं को न सिर्फ़ हवा दी गई, बल्कि उसके कई कृत्यों (दुष्कृत्यों) की तरफ़ से आँख भी मूँदे रखी गई। राज ठाकरे ने कई बार महाराष्ट्र सरकार को चुनौती दी, बिहारियों के साथ सरेआम मारपीट भी की, लेकिन चूंकि राज ठाकरे के उत्थान में कांग्रेस अपना फ़ायदा देख रही थी, इसलिए उसे परवान चढ़ने दिया गया, ताकि वह शिवसेना के मुकाबले खड़ा हो सके और उनके आपसी वोट कटान से कांग्रेस को लाभ मिले…। इस चाल में भी कांग्रेस कामयाब रही, राज ठाकरे की गलतियों और कृत्यों पर परदा डालने के अलावा, मनसे को खड़ा करने के लिए लगने वाला लॉजिस्टिक सपोर्ट (आधारभूत सहायता) भी कांग्रेस ने मुहैया करवाई, जिसके बदले में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कम से कम 40 सीटों पर राज ठाकरे ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन को नुकसान पहुँचाया, आगे चलकर नगरीय निकाय चुनावों में भी राज ठाकरे ने विपक्ष को भारी नुकसान पहुँचाया… कांग्रेस यही तो चाहती थी। हालांकि इन दोनों किरदारों में जमीन-आसमान का अन्तर है और केजरीवाल के साथ इनकी तुलना शब्दशः अथवा सैद्धांतिक रूप से नहीं की जा सकती, परन्तु पहले दोनों उदाहरण कांग्रेस द्वारा मोहरे खड़े करके फ़ूट डालने के सफ़ल उदाहरण हैं। अब हम आते हैं केजरीवाल पर… 


      क्या कभी किसी ने ऐसा उदाहरण देखा है, कि सरेआम कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए कोई व्यक्ति बिजली के खंभे पर चढ़कर, जबरन किसी की काटी गई बिजली जोड़ दे। वहाँ खड़े होकर मुस्कुराते हुए फ़ोटो खिंचवाए, पत्रकारों को इंटरव्यू दे और आराम से निकल जाए… और इतना सब होने पर भी उस व्यक्ति के खिलाफ़ एक FIR तक दर्ज ना हो?आम परिस्थितियों में ऐसा नहीं हो सकता, लेकिन यदि उस व्यक्ति को परदे के पीछे से कांग्रेस का पूरा समर्थन हासिल हो तब जरूर हो सकता है। Arvind Kejriwal कहते हैं कि दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ना उनका पहला लक्ष्य है, जबकि वास्तव में यह लक्ष्य कांग्रेस का है, कि किसी भी तरह शीला दीक्षित को चौथी बार चुनाव जितवाया जाए, इसलिए यदि केजरीवाल को आगे करने, बढ़ावा देने और उसके खिलाफ़ कोई कड़ी कार्रवाई न करके, दिल्ली विधानसभा की 20-25 सीटों पर भी भाजपा को मिलने वाले वोटों की काटखड़ी की जा सके, तो यह कोई बुरा सौदा नहीं है। आँकड़े बताते हैं कि कांग्रेस और भाजपा को मिलने वाले वोटों का प्रतिशत लगभग समान ही होता है, परन्तु सिर्फ़ एक-दो प्रतिशत वोटों से कोई भी पार्टी हार सकती है। शीला दीक्षित हो या कांग्रेस के ढेरों मंत्री, किसी की मार्केट इमेजअच्छी नहीं है (बल्कि रसातल में जा चुकी है), ऐसे में यदि केजरीवाल नामक प्रोडक्ट को बाज़ार में स्थापित कर दिया जाए और मार्केट शेयर (यानी वोट प्रतिशत) का सिर्फ़ 2-3 प्रतिशत बँटवारा भी हो जाए, तो कांग्रेस की मदद ही होगी।अर्थात कांग्रेस या किसी अन्य तीसरी शक्ति के बाय-प्रोडक्टअरविन्द केजरीवाल के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव एक प्रकार का लिटमस टेस्टभी है और टेस्टिंग उपकरणभी है। यदि ईमानदारी(?) का ढोल पीटते हुए राजा हरिश्चन्द्रनुमा इमेज के जरिए कुछ बुद्धिजीवियों, कुछ आदर्शवादी युवाओं और कुछ भोले-भाले लोगों को भ्रमित (Confuse) कर लिया तो समझो मैदान मार लिया…। यदि दिल्ली विधानसभा में यह प्रयोगसफ़ल रहा तभी इसे 2014 के लोकसभा चुनावों में भी आजमाया जाएगा… 


      बहरहाल, बात हो रही थी केजरीवाल की…। वास्तव में दो साल पहले जब से अन्ना आंदोलन आरम्भ हुआ, तभी से यह देखा गया कि उस टीम के क्रियाकलापों में अरविन्द केजरीवाल की किसी से भी नहीं बनी। अक्सर केजरीवाल अपनी मनमानी चलाते रहे और उनके तानाशाही और पूर्व-अफ़सरशाहीरवैये के कारण अन्ना हजारे, किरण बेदी, जस्टिस हेगड़े समेत एक-एक कर सभी साथी केजरीवाल से अलग होते गएपरन्तु चूंकि केजरीवाल उस विशिष्ट जमातसे आते हैं जो NGOs के विशाल नेटवर्क के साथ-साथ सेकुलरों और वामपंथियों के जमावड़े से बना हुआ है, तो इन्हें नए-नए मित्र मिलते गए। परन्तु केजरीवाल के साथ दिक्कत यह हो गई, कि जिस राजा हरिश्चन्द्रकीछवि के सहारे वे कांग्रेस और भाजपा को एक समान बताने अथवा दोनों पार्टियों को एक जैसा भ्रष्ट बताने की कोशिशों में लगे, उनके दागी साथियों के इतिहास और पूर्व-कृत्यों ने इस पर पानी फ़ेर दिया। इनके साथियों के इतिहास को भी हम बाद में संक्षिप्त में देखेंगे, पहले हम केजरीवाल द्वारा की गई राजनैतिकचालाकियों और किसी तीसरी शक्तिद्वारा संचालित होने वाले उनके मोहरा-व्यवहारपर प्रकाश डालेंगे… 

      जब केजरीवाल, अन्ना से अलग हुए और उन्होंने राजनैतिक पार्टी बनाने का फ़ैसला किया, उसी दिन से उन्होंने स्वयं को इस ब्रह्माण्ड का एकमात्र ईमानदार व्यक्तिबताने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। केजरीवाल के इस तथाकथित आंदोलन के लॉंच होने से पहले देश में दो बड़े-बड़े घोटालों पर चर्चा, बहस और विच्छेदन चल रहे थे, वह थे 2G घोटाला और कोयला घोटाला तथा थोरियम घोटाले की खबरें भी छन-छनकर मीडिया में आना शुरु हो चुकी थीं। लेकिन केजरीवाल ने अपनी आक्रामक छापामार मार्केटिंग तकनीक तथा चैनलों के TRP प्रेम को अपना हथियारबनाया। जिस तरह कौन बनेगा करोड़पतिके अगले एपीसोड का प्रचार किया जाता है, उसी तरह केजरीवाल भी अपने साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में आज का खुलासा आज का खुलासाटाइप का प्रचार करने लगे। 

      केजरीवाल ने अपनी मुहिम की पहली बड़ी शुरुआत की, दिल्ली में बिजली दरों के खिलाफ़ आंदोलन करके। उन्होंनें एक दो जगह जाकर कटी हुई बिजली जोड़ने का नाटक किया, मुस्कुराए, फ़ोटो खिंचाए और चल दिए। लेकिन केजरीवाल यह नहीं बता पाए कि जब दिल्ली की जामा मस्जिद पर चार करोड़ से अधिक का बिजली बिल बकाया है तो उसके खिलाफ़ उन्होंने एक शब्द भी क्यों नहीं कहा?कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा-संघ-भगवा से नफ़रत करने के क्रम में जब पिछले अप्रैल में वे बुखारी को मनाने उनके घर पहुँचे थे, तब इनके बीच कोई साँठगाँठ पनप गई?खैर… केजरीवाल का अगला हमला(?) हुआ सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर तथा DLF के आर्थिक कनेक्शनों की संदिग्धता दर्शाने और पोल खोलने से। रॉबर्ट वाड्रा पर उन्होंने सिर्फ़ 300 करोड़के घोटाले का आरोप मढ़ा, और यह सिद्ध करने की कोशिश की, कि हरियाणा सरकार, रॉबर्ट वाड्रा, DLF और कांग्रेस सबने आपसी मिलीभगत से दिल्ली-राजस्थान-हरियाणा में जमकर जमीनों की लूट की है, जिससे रॉबर्ट वाड्रा को रातोंरात करोड़ों रुपए का लाभ हुआ है। एक शानदार सनसनी फ़ैलाने के लिए तो केजरीवाल द्वारा रॉबर्ट वाड्रा का नाम लेना बहुत मुफ़ीद साबित हुआ, और मीडिया ने इस हाथोंहाथ लिया… एक सप्ताह तक इस घोटाले पर मगजपच्ची होती रही, चैनलों के डिबेट-रूम गर्मागर्म बहस से सराबोर होते रहे। तत्काल अगले सप्ताह, बिग-बॉस (सॉरी… केजरीवाल बॉस) का नया संस्करण मार्केट में आ गया, जिसमें उन्होंने सलमान खुर्शीद पर उनके ट्रस्ट द्वारा विकलांगों के लिए खरीदे जाने वाले उपकरणों में 71 लाख का महाघोटाला(?), चैनलों पर परोस दिया। अगले दस दिन भी सलमान खुर्शीद की नाटकीय घोषणाओं, केजरीवाल की चुनौतियों, फ़िर सलमान खुर्शीद की प्रत्युत्तर प्रेस-कॉन्फ़्रेंसमें बीत गया। एपिसोड के इस भाग में, उत्तेजना, देख लूंगा, स्याही और खून, टाइप के अति-नाटकीय ड्रामे पेश किए गए। अर्थात 1 लाख 76 हजार करोड़ के कोयला घोटाले से सारा फ़ोकस पहले 300 करोड़ के घोटाले और फ़िर 71 लाख के घोटाले तक लाकर सीमित कर दिया गया। 

      यहाँ पर मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि रॉबर्ट वाड्रा या सलमान खुर्शीद ने घोटाला या भ्रष्टाचार किया या नहीं किया, सवाल यह है कि इस प्रकार के मीडिया-ट्रायलऔर TRP अंक बटोरू मार्केटिंग नीति से केजरीवाल ने, मुख्य मुद्दों से देश का ध्यान भटका दिया। सुशील शिंदे पहले ही कह चुके हैं कि जब जनता बोफ़ोर्स भूल गई तो बाकी के घोटाले भी भूल जाएगी, तब उनका विश्वास केजरीवाल ड्रामे पर ही था। जैसा कि बेनीप्रसाद वर्मा ने मजाक में कहा कि सिर्फ़ 71 लाखसे क्या होता है? कोई केन्द्रीय मंत्री इतने कम(?) का घोटाला कर ही नहीं सकता, उसी प्रकार रियलिटी सौदों से जुड़ा हुआ कोई मामूली व्यक्ति भी मजाक-मजाक में ही बता सकता है कि वास्तव में रॉबर्ट वाड्रा भी 300 करोड़ जैसा टुच्चा घोटालाकर ही नहीं सकते, क्योंकि महानगर में रियलिटी क्षेत्र में बिजनेस करने वाला मझोला बिल्डर भी 300 करोड़ से ऊपर का ही आसामी होता है, फ़िर रॉबर्ट तो ठहरे राष्ट्रीय दामाद, विभिन्न अपुष्ट सूत्रों के अनुसार वाड्रा कम से कम 5 से 8 हजार करोड़ के मालिक हैं, लेकिन सिर्फ़ चैनलों पर एक सप्ताह की बहस हुई, चर्चा हुई, कांग्रेस ने कहा कि हम वाड्रा के खिलाफ़ जाँच नहीं करवाएंगे… और मामला खत्म, अगला मामला (यानी सलमान दबंग का) शुरु…। 

      इन दोनों मुद्दों पर मिली हुई TRP, प्रसिद्धि, कैमरों-माइक की चमक-दमक और VIP दर्जे ने अरविन्द केजरीवाल को एक गुब्बारे की तरह हवा में चढ़ा दिया। आम जनता के बीच चैनलों ने उनकी राजा हरिश्चन्द्रजैसी पहले से पेश की हुई छवि को,पॉलिश करकेऔर चमकाना आरम्भ किया। इन शुरुआती हमलों के बाद चूंकि उन्हें भाजपा-कांग्रेस को एक समान दर्शाना था, इसलिए जल्दबाजी में उन्होंने नितिन गडकरी पर हमला बोल दिया। दस्तावेजों के अभाव, मुद्दों की अधूरी समझ तथा गडकरी को भ्रष्ट साबित करने की इस जल्दबाजी ने इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस को फ़्लॉप शोबनाकर रख दिया। यहाँ तक कि भाजपा के विरोधियों को भी केजरीवाल द्वारा गडकरी के खिलाफ़ पेश किए गए तथाकथित सबूतोंमें भ्रष्टाचार कहाँ हुआ है, यह ढूँढ़ने में खासी मशक्कत करनी पड़ी।परन्तु अव्वल तो केजरीवाल जल्दबाजी में हैं और दूसरे उनका किसी संस्था पर भरोसा भी नहीं है, इसलिए न तो केजरीवाल ने रॉबर्ट वाड्रा, न ही सलमान खुर्शीद और न ही नितिन गडकरी पर कोई FIR दर्ज करवाई, न कोई मुकदमा दायर किया और न ही सरकार से इन सबूतों(?) की किसी प्रकार की जाँच करने की माँग की। क्योंकि केजरीवाल का मकसद था, सिर्फ़ हंगामाखड़ा करके सस्ती लोकप्रियता बटोरना, और अपने गुप्तआकाओं के इशारे पर कांग्रेस-भाजपा को एक ही कठघरे में खड़ा करना। यहाँ पर भी चालबाजी यह कि जहाँ एक ओर गडकरी तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, वहीं दूसरी ओर रॉबर्ट वाड्रा तो कांग्रेस के सदस्य भी नहीं हैं… क्या केजरीवाल में सोनिया गाँधी के इलाज पर होने वाले खर्च, वायुसेना के विमानों की सवारी के बारे में सवाल पूछने की हिम्मत है? साफ़ बात है कि गडकरी पर हमला बोलकर उन्होंने अपना छिपा हुआ मकसदहासिल करने की नाकाम कोशिश की, जबकि राहुल गाँधी या अहमद पटेल को छुआ तक नहीं। ज्ञातव्य है कि प्रियंका गाँधी भी रॉबर्ट की कई कम्पनियों में हाल के दिनों तक एक निदेशक थीं। 



      बहरहाल, नितिन गडकरी के खिलाफ़ पेश किए गए बोदे और बकवास किस्म के सबूतोंके तत्काल बाद जब भाजपा समर्थकों ने  केजरीवाल के अनन्य सहयोगियों(?) के खिलाफ़ मोर्चा खोला और कई तथ्य पेश किए तब से केजरीवाल साहब बैकफ़ुट पर आ गए हैं। असल में केजरीवाल द्वारा गढ़ी गई राजा हरिश्चन्द्रकी छवि को भुनाने के लिए अंजलि दमानिया और मयंक गाँधी जैसे लोग भी केजरीवाल के साथ जुड़ गए।गडकरी पर आरोप लगाने से पहले अंजली दमानिया को कोई नहीं जानता था, लेकिन जब खोजबीन की गई तो पाया गया कि यह मोहतरमा खुद ही जमीन के विवादास्पद सौदों में शामिल हैं। दमानिया ने कर्जत (मुम्बई) में आदिवासियों की जमीन झूठ बोलकर खरीदीऔर जब वहाँ बनने वाले बाँध की डूब में आने लगी तो उनकी जमीन के बदले दूसरे आदिवासियों की जमीन ली जाए ऐसा पत्र भी महाराष्ट्र सरकार को लिखा। जब इस अवैध जमीन पर कालोनी बसाने की योजना खटाई में पड़ गई तो मोहतरमा ने चारों ओर हाथ-पैर मारे, लेकिन जमीन नहीं बची… इसकी खुन्नस अंजलीदमानिया ने नितिन गडकरी पर उतार दी। अरविन्द की टीम में ऐसे ही दूसरे संदिग्ध व्यक्ति हैं मयंक गाँधी, मुम्बई में इनके बारे में कई सच्चे-झूठे किस्से मशहूर हैं तथा लोकग्रुपके नाम से जो हाउसिंग सोसायटी है उसकी कई अनियमितताओं के पुलिंदे महाराष्ट्र सरकार के पास मौजूद हैं,साथ ही इन महोदय पर दूसरे बिल्डरों एवं जमीन मालिकों को कथित रूप से धमकाने के आरोप भी हैं। टीम के तीसरे प्रमुख सदस्य प्रशांत भूषण तो खैर शुरु से ही विवादों में हैं, चाहे वह कश्मीर की स्वायत्तता सम्बन्धी बयान हो, उत्तरप्रदेश में झूठी कीमत बताकर, सस्ती रजिस्ट्री करवाना हो, या हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीदने का मामला हो… यह साहब भी कथित हरिश्चन्द्र टीममें शामिल होने लायक नहीं हैं…। अब बचे स्वयं श्री अरविन्द केजरीवाल, जिन पर फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन सहित अमेरिका के अन्य संगठनों से लाखों डॉलर चन्दा लेने का आरोप तो है ही, इंडिया अगेन्स्ट करप्शनके बैनर तले अन्ना आंदोलन के समय लिए गए पैसों के दुरुपयोग और उनके खुद के NGO, PCRF के लाभ के लिए उपयोग करने के आरोप भी हैं (हालांकि जब इसकी पोल खुल गई थी, तब वे चन्दे में एकत्रित हुए 2 करोड़ रुपए लेकर अन्ना को भेंट करने उनके गाँव पहुँच गए थे)।इन्हीं की टीम के एक पूर्व सदस्य वायपी सिंह ने केजरीवाल पर खुलेआम शरद पवार को बचाने का आरोप लगा डाला, और केजरीवाल सिर्फ़ खिसियाकर रह गए। इनकी वेबसाईट पर जब IAC का हिसाब-किताब देखा जाता है तब उसमें लाखों रुपए का खर्च वेतन-भत्तेके मद में डाला गया है, चकरा गए ना!!! जी हाँ, संभवतः वेतन-भत्ते लेकर किया जाने वाला यह अपने-आप में पहला ही ई-आंदोलनहोगा।

जो कांग्रेस सरकार कानूनन अनुमति लेकर आमसभा और योग करने आए निहत्थे लोगों को रामलीला मैदान से क्रूरतापूर्ण पद्धति अपनाकर आधी रात को मार-मारकर भगा देती है, वही सरकार केजरीवाल को बड़े आराम से बिजली के तार जोड़ने और मुस्कराते हुए फ़ोटो खिंचाने की अनुमति दे देती है। जो सरकार बाबा रामदेव के खिलाफ़ अचानक सैकड़ों मामले दर्ज करवा देती है, वही सरकार केजरीवाल के NGO के खिलाफ़ एक सबूत भी नहीं ढूँढ पाती?जब किसी की गाड़ी चौराहे पर ट्रैफ़िक पुलिस द्वारा पकड़ी जाती है, तब सारे कागज़ात होते हुए भी वह इंस्पेक्टर ऐसा कोई न कोई पेंच उस गाड़ी में निकाल ही देता है कि चालान बन ही जाए, परन्तु जो सरकार हाथ-पाँव धोकर फ़िलहाल बाबा रामदेव के पीछे पड़ी है, उसे अरविन्द केजरीवाल के NGOs के खिलाफ़ एक भी सबूत नहीं मिला? यह कोई हैरत की बात नहीं अंदरूनी मोहरावादी वोट गणित समझनेकी बात है… 

कुल मिलाकर, कहने का तात्पर्य यह है कि अरविन्द केजरीवाल सिर्फ़ TRP वाली नौटंकियाँ करने में माहिर हैं, भ्रष्टाचार से लड़ाई करने का न तो उनका कोई इरादा है और न ही इच्छाशक्ति। केजरीवाल को सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिए खड़ा किया गया है ताकि कांग्रेस के घोटालों से ध्यान भटकाया जा सके, भाजपा को भी कांग्रेस के ही समकक्ष खड़ा करते हुए, मतदाताओं में भ्रम पैदा किया जा सके, और इस भ्रम के कारण होने वाले 2-3 प्रतिशत वोटों के इधर-उधर होने पर इसका राजनैतिक फ़ायदा उठाया जा सके। टीवी चैनलों के लिए केजरीवाल एक रियलिटी टीवीशो की तरह हैं, गुजरात चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव से पहले ऐसे कई रियलिटी शो आने वाले हैं। न्यूज़चैनलोंको मुफ्त में काम करने वाला एक गढ़ा गया हीरोटाइप का नेता मिल गया है। यह ऐसा नेता है जोआमिरखान की तरह ही शो करेगा, कभी कभी जनता में लेकिनअधिकांशतःटीवी स्टूडियो या प्रेस कॉफ्रेस में ही मिलेगा।
 
      अब अंत में सिर्फ़ एक ही सवाल पर विचार करेंगे तो समझ जाएंगे कि भ्रष्टाचार के मूल मुद्दों को पीछे धकेलने और भाजपा की बढ़त को रोकने के लिए मीडिया और कांग्रेस किस तरह से हाथ में हाथ मिलाकर चल रहे हैं… सवाल है कि पिछले कई सप्ताह से उमा भारती गंगा के प्रदूषण और गंगा नदी को बचाने के लिए एक विशाल यात्रा कर रही हैं, जो बिहार-उत्तरप्रदेश में गंगा किनारे के जिलों में चल रही है… कितने पाठक हैं जिन्होंने उमा भारती की इस यात्रा और गंगा से जुड़े मुद्दों पर मुख्य मीडिया में बड़ा भारी कवरेज देखा हो?केजरीवाल को मिलने वाले कवरेज और उमा भारती को मिलने वाले कवरेज, केजरीवाल और उमा भारती की ईमानदारी, तथा केजरीवाल और उमा भारती की संगठन क्षमता की तुलना कर लीजिए, आपके समक्ष चित्रस्पष्ट हो जाएगा कि वास्तव में केजरीवाल क्या पहुँची हुई चीज़हैं। यदि आप राजनैतिक गणित का आकलन करने के इच्छुक हैं तब तो आपके लिए यह आसान सा सवाल होगा कि, केजरीवाल की इस कथित मुहिम का लाभ किसे मिलेगा? यदि केजरीवाल को कुछ सीटें मिल जाती हैं तो किसका फ़ायदा होगा? क्या अन्ना के मंच से भारत माता का चित्र हटवाने वालेकेजरीवाल कभी भाजपा के साथ आ सकते हैं? जब हमारा देश गठबंधन सरकारों के दौर में हैं तब केजरीवाल द्वारा 2-3 प्रतिशत वोटों को प्रभावित करने से क्या कांग्रेस के तीसरी बार सत्ता में आने का रास्ता साफ़ नहीं होगा??? अर्थात क्या आप अगले पाँच साल UPA-3को झेलने के लिए तैयार हैं? यदि नहीं… तो मोहरोंसे सावधान रहिए… 

=================
Dialogue India पत्रिका में प्रकाशित… लिंक यह है… 
https://www.dropbox.com/s/37jow5959vs2270/DI-November-Issue-2012-in-Hindi.zip

Viewing all articles
Browse latest Browse all 168

Trending Articles