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Channel: महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar)
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NSG Commando PV Manesh and Insensitive Bureaucracy

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NSGकमांडो की बहादुरी और असंवेदनशील नौकरशाही...




हाल ही में देश ने मुम्बई हमले (२६/११) की पाँचवीं बरसी मनाई, लेकिन देशवासियों के लिए शर्म की बात यह है कि उस हमले में कई जाने बचाने वाला एक जाँबाज कमांडो आज भी हमारे देश की भ्रष्ट नौकरशाही और घटियातम राजनीति का शिकार होकर पैरेलिसिस और अन्याय से जूझ रहा है...

हजार लानत भेजने लायक किस्सा यूं है कि 26/11 के मुम्बई हमले के समय कमांडो पीवीमनेश, ओबेरॉय होटल में आतंकवादियों से भिड़े थे। उन्हें अहसास हुआ कि एककमरे में कोई आतंकवादी छिपा हुआ है, जान की परवाह न करते हुए मनेश गोलियाँबरसाते हुए उस कमरे में घुसे, परन्तु अंधेरा होने की वजह से वे तुरन्त भाँपनहीं सके कि आतंकवादी किधर छिपा है। इस बीच आतंकवादी ने एक ग्रेनेड मनेशकी ओर उछाला, जो कि मनेश के हेलमेट के पास आकर फ़टा, हालांकि मनेश ने त्वरितकार्रवाई करते हुए उस आतंकवादी को मार गिराया, लेकिन हेलमेट पर अत्यधिकदबाव और धमाके की वजह से पीवी मनेश को अंदरूनी दिमागी चोट लगी और उनके शरीरकी दाहिनी बाजू पक्षाघात से पीड़ित हो गई।ग्रेनेडकी चोट कितनी गम्भीर थी इसका अंदाज़ा इसी बात से लग सकता है कि हेलमेट केतीन टुकड़े हो गये और मनेश चार माह तक कोमा में रहेउनके शरीर का दांया हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया. होटल ओबेरॉय में NSGऑपरेशन के दौरान मनेश ने अकेले ही सूझबूझ से चालीस लोगों की जान बचाई और दो आतंकवादियों को मार गिराया था. कोमा से बाहर आने के बाद व्हीलचेयर पर ही उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया. इसके पश्चात मनेश की पोस्टिंग उनके गृहनगर कन्नूर की प्रान्तीय सेना यूनिट में किया गया, ताकि उनकी देखभाल और इलाज जारी रहे. मनेश की मूल नियुक्ति सेना की सत्ताईसवीं मद्रास रेजिमेंट की है, और उसे NSGमें उसकी फिटनेस की वजह से भेजा गया था. 


दिल्ली एवं मुम्बई के विभिन्न सेना अस्पतालों में इस वीर का इलाज चलता रहा, परन्तु एलोपैथिक दवाईयों से जितना फ़ायदा हो सकता था उतना ही हुआ। अन्त मेंलगभग सभी डॉक्टरों ने मनेश को आयुर्वेदिक इलाज करवाने की सलाह दी। मनेशबताते हैं कि उन्हें उनके गृहनगर कन्नूर से प्रति पंद्रह दिन में 300 किमीदूर पलक्कड जिले के एक विशेष आयुर्वेदिक केन्द्र में इलाज एवं दवाओं हेतुजाना पड़ता है, जिसमें उनके 2000 रुपये खर्च हो जाते हैं इस प्रकार उन्हेंप्रतिमाह 4000 रुपये आयुर्वेदिक दवाओं पर खर्च करने पड़ते हैं।रक्षा मंत्रालय के नियमों के अनुसारआयुर्वेदिक इलाज के बिल एवं दवाओं का खर्च देने का कोई प्रावधान नहीं है...सैनिक या तो सेना के अस्पताल में इलाज करवाए या फ़िर एलोपैथिक इलाज करवाये।इस बेतुके नियम की वजह से कोई भी अफ़सर इस वीर सैनिक को लगने वाले 4000 रुपये प्रतिमाह के खर्च को स्वीकृत करने को तैयार नहीं है। २००९ के अंत तक मनेश ने आयुर्वेदिक दवाओं के शानदार नतीजों के कारण धीरे-धीरे बगैर सहारे के चलना और बोलना शुरू कर दिया था. परन्तु सेना ने उनके आयुर्वेदिक इलाज पर हुए खर्चों के बिलों को चुकाने से मना कर दिया (वे कहते रहे कि नियम नहीं हैं). हालांकि बाद में दिल्ली हाईकोर्ट की लताड़ के बाद सेना के अधिकारियों ने “स्पेशल केस” मानते हुए मनेश की दवाओं का खर्च उन्हें दे दिया. लेकिन इसके लिए भी मनेश को तकलीफें, अधिकारियों की मनमानी सहनी पड़ीं और अंततः न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा.

इस बहादुर कमांडो के साथ यह अन्याय करने के बावजूद नौकरशाही का मन नहीं भरा तो अब उन्हें उनके गृहनगर से दिल्ली तबादला कर दिया गया है, साथ ही एक सरकारी सहायक जो उन्हें मिला था, वह सुविधा भी छीन ली गई है. मजबूरी में मनेश ने दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली, जिसने मानवीयता दिखाते हुए उसके तबादले पर २४ जनवरी तक की रोक लगा दी है, और सरकार से इसका कारण बताने को कहा है. हो सकता है कि सरकार और सेना के अधिकारियों के पास कोई तकनीकीऔर कानूनीदांवपेंच हो, जिसके सहारे वे अपने इस निर्णय का बचाव कर ले जाएँ, परन्तु हकीकत यही है कि आज भी पीवी मनेश के शरीर का एक हिस्सा ठीक से काम नहीं कर रहा और उसे चौबीसों घंटे देखभाल की आवश्यकता है. हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने मनेश को तात्कालिक राहत दे दी हो, परन्तु सेना के अधिकारियों ने उसे लगातार परेशान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. मनेश ने रक्षामंत्री एंटोनी के सामने भी अर्जी लगाई हुई है, परन्तु उधर से भी कोई जवाब नहीं है.

१७ सितम्बर २०१३ को दिए गए इस आदेश के मुताबिक़ पीवी मनेश को आने घर कन्नूर से सैकड़ों किमी दूर दिल्ली में ज्वाइन करना है. आश्चर्यजनक बात तो यह है कि १० सितम्बर को ही मनेश की पत्नी सीमा ने एके एंटोनी से मुलाक़ात करके उन्हें उसकी शारीरिक तकलीफों के बारे में बताकर उनसे गृहनगर में ही रखने की अपील की थी. एंटोनी ने भी रक्षा मंत्रालय में सम्बन्धित अधिकारियों को बुलाकर स्पेशल केस मानते हुए मनेश को उसके गृहनगर में ही रखने के आदेश दिए थे, परन्तु वे सब आदेश नौकरशाही की मर्जी के सामने हवा हुए. अधिकारियों ने मनेश को फरमान सुना दिया कि उन्हें किसी भी हालत में ३० अक्टूबर को दिल्ली के सेना मुख्यालय में रिपोर्ट करना है. सारे दरवाजे बंद होने के बाद मनेश ने न्यायालय की शरण ली. जहाँ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस वीपी वैश्य ने मनेश के ट्रांसफर आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी, और अगली सुनवाई २४ जनवरी २०१४को रखी गई है. शारीरिक तकलीफों के बावजूद ट्रांसफर करने की शिकायत के अलावा अपनी याचिका में मनेश ने आरोप लगाया है कि मद्रास यूनिट के कमान्डिंग ऑफिसर ने उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार और मानसिक प्रताड़ना का आरोप भी लगाया है. पत्नी सीमा ने भी एंटोनी को लिखे अपने पत्र में कहा है कि ऑफिसर के ऐसे व्यवहार के कारण उनके पति को अत्यधिक सिरदर्द व चक्कर की शिकायत भी बढ़ गई है. फिलहाल मनेश अपने पाँच साल के बेटे और वृद्ध माता-पिता के साथ कन्नूर में रहते हैं, जहाँ से उन्हें महीने में दो बार २०० किमी दूर आयुर्वेदिक इलाज के लिए जाना पड़ता है.


हालांकि पीवी मनेश के पास शौर्य चक्र विजेता होने की वजह से रेल में मुफ़्तयात्रा का आजीवन पास है, परन्तु फ़िर भी एक-दो बार टीसी ने उन्हें आरक्षितस्लीपर कोच से बेइज्जत करके उतार दिया था। रूँधे गले से पीवी मनेश कहते हैंकि भले ही यह देश मुझे भुला दे, परन्तु फ़िर भी देश के लिए मेरा जज़्बा औरजीवन के प्रति मेरा हौसला बरकरार हैमेरी अन्तिम आशा अब आयुर्वेदिकइलाज ही है, पिछले एक वर्ष में अब मैं बिना छड़ी के सहारे कुछ दूर चलने लगाहूँ तथा स्पष्ट बोलने और उच्चारण में जो दिमागी समस्या थी, वह भी धीरे-धीरेदूर हो रही है

इस बहादुर सैनिक के सिर में उस ग्रेनेड के तीन नुकीले लोहे के टुकड़े धँसगये थे, दो को तो सेना के अस्पताल में ऑपरेशन द्वारा निकाला जा चुका है, परन्तु डॉक्टरों ने तीसरा टुकड़ा निकालने से मना कर दिया, क्योंकि उसमें जानका खतरा था। दिलेरी की मिसाल देते हुए, पीवी मनेश मुस्कुराकर कहते हैं किउस लोहे के टुकड़े को मैं 26/11 की याद के तौर पर वहीं रहने देना चाहताहूँ, मुझे गर्व है कि मैं देश के उन चन्द भाग्यशाली लोगों में से हूँजिन्हें शौर्य चक्र मिला हैऔर मेरी इच्छा है कि मैं अपने जीवनकाल में कमसे कम एक बार ओबेरॉय होटल में पत्नी-बच्चों समेत लंच लूं और उसी कमरे मेंआराम फ़रमाऊँ, जिसमें मैने उस आतंकवादी को मार गिराया था

अपनी जान पर खेलकर देश के दुश्मनों से रक्षा करने वाले सैनिकों के प्रतिसरकार और नौकरशाही का संवेदनहीन रवैया जब-तब सामने आता रहता हैसभी को याद है कि संसद पर हमले को नाकाम करने वाले जवानों की विधवाओं को चार-पाँच साल तकचक्कर खिलाने और दर्जनों कागज़ात/सबूत मंगवाने के बाद बड़ी मुश्किल सेपेट्रोल पम्प दिये गयेजबकि इससे पहले भीलद्दाख में सीमा पर ड्यूटी दे रहे जवानों हेतु जूते खरीदने की अनुशंसाकी फ़ाइल महीनों तक रक्षा मंत्रालय में धूल खाती रही, जब जॉर्ज फ़र्नांडीस नेसरेआम अफ़सरों को फ़टकार लगाई, तब कहीं जाकर जवानों को अच्छी क्वालिटी केबर्फ़ के जूते मिले

दूसरी तरफ(??) की मौज का ज़िक्र किए बिना लेख पूरा नहीं होगा... आपको याद होगा कि कैसे न्यायालय के आदेश परकर्नाटक के एक रिसोर्ट में कोयम्बटूर बम धमाके के मुख्य आरोपीअब्दुल नासेर मदनी का सरकारी खर्च पर पाँच सितारा आयुर्वेदिक इलाजचल रहा हैजबकि 26/11 के मुम्बई हमले के समय बहादुरी दिखाने वालेजाँबाज़ कमाण्डो शौर्य चक्र विजेता पीवी मनेश को भारत की सरकारी मशीनरी औरबड़े-बड़े बयानवीर नेता आयुर्वेदिक इलाज के लिये प्रतिमाह 4000 रुपये कीविशेष स्वीकृतिनहीं दे रहे हैंउधर अब्दुलनासेर मदनी पाँच सितारा आयुर्वेदिक मसाज केन्द्र में मजे कर रहा है, क्योंकि उसके पास वकीलों की फ़ौज तथा सेकुलर गैंगका समर्थन है।
जिस तरह से अब्दुल नासेर मदनी, अजमल कसाब और अफ़ज़ल गुरु कीखातिरदारीहमारे सेकुलर और मानवाधिकारवादी कर रहे हैंतथा कश्मीर, असम, मणिपुर और नक्सल प्रभावित इलाकों में कभी जवानों को प्रताड़ित करके, तो कभीआतंकवादियों और अलगाववादियों के साथियों-समर्थकोंसे हाथ मिलाकर, उन्हेंसम्मानित करकेवीर जवानों के मनोबल को तोड़ने में लगे हैं, ऐसे में तो लगताहै कि पीवी मनेश धीरे-धीरे अपनी जमापूँजी भी अपने इलाज पर खो देंगेक्योंकि नौकरशाही और सरकार द्वारा उन्हीं की सुनी जाती है, जिनके पास लॉबिंगहेतु पैसा, ताकत, भीड़ और दलालहोते हैंमुझे चिंता इस बात की है कि देश के लिए जान की बाजी लगाने वाले जांबाजो केसाथ नौकरशाही और नेताओं का यही रवैया जारी रहा, तो कहीं ऐसा न हो कि किसीदिन किसी जवान का दिमाग सटकजाये और वह अपनी ड्यूटी गन लेकर दिल्ली केसत्ता केन्द्र नॉर्थ-साउथ ब्लॉक पहुँच जाएदेखना है कि इस बहादुर की तकलीफों का अंत कब होता है, और हमारी नौकरशाही में शामिल हरामखोरों को कब अक्ल आती है, और कब उन्हें कोई सजा मिलती है.

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