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Channel: महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar)
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Intolerance of Pesudo Seculars and Neo-Liberals

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फेसबुक असहिष्णु नहीं है, रिपोर्ट करने वाले "वैचारिक कंगाल"असहिष्णु हैं... 

कल दिनाँक 18 मार्च 2015 को मैंने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली, जिसमें Economic Times के कार्टूनिस्ट आर. प्रसाद का एक कार्टून मैंने अपनी वाल पर शेयर किया. उस बेहद आपत्तिजनक कार्टून में हनुमान जी को क्रॉस पर लटके हुए दिखाया गया. इस कथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी टाईप के कार्टूनिस्ट ने हरियाणा में चर्च पर हुए हमले के विरोध में यह घटिया कार्टून बनाया और इसे Economic Times ने प्रकाशित किया.



18 मार्च की सुबह-सुबह फेसबुक द्वारा मुझे सूचित किया गया कि आपके यह पोस्ट "आपत्तिजनक"है, इसलिए नियमों के तहत इसे हटाया जाता है. इतना ही नहीं, फेसबुक ने मुझे अगले चौबीस घंटे के लिए लॉग-इन करने से भी प्रतिबंधित कर दिया. यदि उस पोस्ट में कुछ भी आपत्तिजनक था, तो वह हनुमान जी का गलत चित्रण, जिसके कारण मेरी भावनाएँ आहत हुई थीं. ET का यही कार्टून अन्य कई अंग्रेजी, तमिल एवं मराठी फेसबुक उपयोगकर्ताओं ने भी शेयर किया. ट्विटर ने भी मूल कार्टून अथवा कार्टूनिस्ट को ब्लॉक नहीं कियागया और ना ही पोस्ट हटाई गई. कार्टूनिस्ट ने ट्विटर पर भी हनुमान भक्तों की जमकर गालियाँ खाईं, लेकिन जैसा कि होता आया है कान्वेंट के अर्ध-शिक्षित बुद्धिजीवी नंबर एक के बेशर्म और ढीठ होते हैं, आर प्रसाद ने वह कार्टून नहीं हटाया. ज़ाहिर है कि कार्टून बेहद आपत्तिजनक है ही, लेकिन फेसबुक ने प्रतिबंधित किसे किया?? मुझे...इसका सीधा अर्थ यही है कि जिस किसी "प्रगतिशील बुद्धिजीवी गिरोह"ने फेसबुक पर मेरी पोस्ट को लेकर रिपोर्ट किया, वह मेरे शब्दों को लेकर किया. मेरे शब्दों के कारण ही इन वामियों-आपियों-सेकुलरों को इतनी भीषण मिर्ची लगी कि वे मुझसे बदला भंजाने के लिए इतने निचले स्तर तक गिर गए. ऐसा क्या था मेरे शब्दों में?? जरा देखिये... इसमें क्या आपत्तिजनक है कोई बताएगा मुझे??




चित्र से स्पष्ट है कि इस पोस्ट की शुरुआती चार पंक्तियाँ कथित प्रगतिशीलों एवं बुद्धि बेचकर आजीविका कमाने वाले बुद्धिजीवियों को "असमिया मिर्च"लगाने के लिए पर्याप्त थीं. क्योंकि इन पंक्तियों में मैंने इस "गिरोह"को शार्ली हेब्दो मामले से सम्बन्धित "बदरंग सेकुलर आईना"दिखा दिया.मई 2014 के बाद से ही, अर्थात जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं.. यह "गिरोह"बुरी तरह खार खाए बैठा है. इसे आज भी विश्वास नहीं हो रहा है कि मोदी प्रधानमंत्री बन चुके हैं और कम से कम पूरे पाँच साल बने रहेंगे. इसीलिए मोदी के खिलाफ जो घृणा इन्होंने पिछले बारह साल तक अपने मन में भर रखी हैं, गाहे-बगाहे उसकी उल्टियाँ फेसबुक-ट्विटर पर करते रहते हैं. वैचारिक जंग में बुरी तरह मात खा चुका यह प्रगतिशील गिरोह, हिन्दूवादियों से बहस में घबराता है. राष्ट्रवादियों को ब्लॉक करके बुर्के में छिप जाना इनका शगल बन चुका है. ओम थानवी जैसे लोग जो खुद को पत्रकार कहते हैं, उन्हें तो फेसबुक पर "ब्लॉकाधीश"की उपाधि हासिल है. संक्षेप में तात्पर्य यह है कि दूसरों को "उदारता", "लोकतंत्र", "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता"आदि के उपदेश देने वाले वामपंथी-सेकुलर-प्रगतिशील वैचारिक पाखण्डी इतने ज्यादा घबराए हुए और तानाशाही मानसिकता के हैं, कि अपने खिलाफ चार शब्द भी नहीं सुन सकते.

मैं पिछले आठ साल से सोशल मीडिया पर हूँ. ब्लॉगिंग के जमाने में भी हमारे वैचारिक संघर्ष होते रहते थे, असहिष्णु तो वामपंथी पहले से ही थे, लेकिन उन दिनों यह गिरोह इतने निचले स्तर तक नहीं गिरता था. ज़ाहिर है कि इस गिरोह में कुछ नए-नवेले "आपिये किस्म के"लोग भी शामिल हो गए हैं.

बहरहाल... इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है कि आप यहाँ किसी को रोक नहीं सकते. उसके विचारों के प्रवाह को बाधित नहीं कर सकते. यहाँ सब कुछ मुक्त है. जिस "गिरोह"ने मेरे फेसबुक प्रोफाईल की इस पोस्ट को रिपोर्ट किया है वह मूर्ख है. मैंने दोनों स्क्रीनशॉट लेकर इसे ब्लॉग पर डाल दिया... कुछ अन्य वेबसाईट्स पर भी डालूँगा... तो मुझे सिर्फ कुछ देर के लिए रोककर अंततः बेवकूफ कौन सिद्ध हुआ?? :) :)

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