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Channel: महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar)
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Hats Off to Patriotic Young Scientist PV Arun

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देशभक्त युवा वैज्ञानिक पीवी अरुण को सलाम

जब भारत के अधिकाँश कूल ड्यूड युवा अमेरिका में अच्छी नौकरी, स्थायी वीज़ा और नागरिकता की आस लगाए रहते हैं, ऐसे समय पर केरल के इस युवा ने एक नई मिसाल कायम की है. अमेरिका की प्रतिष्ठित स्पेस एजेंसी NASA को भी इस युवा के जज्बे को देखते हुए अपने नियम शिथिल करने पड़े. जी हाँ, बात हो रही है, केरल के पीवी अरुण की.

भोपाल की NIITसंस्थान MANITसे बीटेक की डिग्री लेने के बाद, अरुण ने छात्रवृत्ति द्वारा अमेरिका की नंबर एक यूनिवर्सिटी मैसाचुएट्स इंजीनियरिंग से अपनी पी.एचडी. पूरी की. उनकी अपार प्रतिभा और बुद्धि को देखते हुए NASAके अधिकारियों ने अरुण को स्थाई नौकरी, मोटी तनख्वाह और आवास आदि की पेशकश की.परन्तु जैसा कि नासाका नियम है, वहाँ पर स्थायी नौकरी हेतु व्यक्ति को अपनी वर्तमान नागरिकता छोड़कर अमेरिका की नागरिकता लेना जरूरी है, यह पता चलते ही पीवी अरुण ने नासा के सामने यह शर्त रख दी कि वे अपनी भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ेंगे, यदि नासा को मंजूर हो तो ठीक वर्ना वे पी.एचडी. के बाद का अपना शोध भारत में ही करेंगे. बहरहाल, प्रतिभाशाली वैज्ञानिक को नासा खोना नहीं चाहती थी, इसलिए इतिहास में पहली बार नासा ने राष्ट्रपति की विशेष अनुमति से अपने नियमों में ढील दी और अरुण को NASAमें शोध एवं उसकी मर्जी होने तक नौकरी जारी रखने की अनुमति दी है.
अब पीवी अरुण नासाके रिमोट सेंसिंग द्वारा ब्रह्माण्ड में अलौकिक जीवन की खोजनामक नए शोध कार्यक्रमका हिस्सा होंगे. यहाँ पर पीवी अरुण को स्वयं का एक अलग वर्क स्टेशन प्रदान किया जाएगा, तथा उनके काम में कोई भी अधिकारी हस्तक्षेप नहीं कर सकेगा. अखबारों से बात करते हुए अरुण ने बताया कि उन्हें बचपन से ही कंप्यूटर साईंस में रूचि थी. भोपाल की MANITसे पास-आउट होने के बाद उन्होंने इन्फोसिस, IBMजैसी प्रतिष्ठित कंपनियों की आकर्षक पॅकेज वाली नौकरी ठुकरा दी थी. उनका सपना अंतरिक्ष विज्ञान में कुछ विशेष करने का था. ऐसे में उनके परिवार ने भी उनका पूरा साथ दिया और उन्हें आगे की पढ़ाई हेतु अमेरिका की MITमें डॉक्टरेट के लिए भेजा. अरुण आगे बताते हैं कि उन्हें कृत्रिम बुद्धिजैसे नए क्षेत्र में अनुसंधान करने की तीव्र इच्छा थी, वे आईटी कंपनियों के बंधे-बँधाए मार्ग और बोरिंग नौकरी पर चलना नहीं चाहते थे.

पीवी अरुण का उत्साह सभी परिजनों तथा शिक्षकों ने बढ़ाया. इसके अलावा अरुण के आदर्श डॉ अब्दुल कलाम ने भी उसकी हौसला-अफज़ाई की. एमटेक करने के दौरान पूर्व इसरो अध्यक्ष वैज्ञानिक डॉ अब्दुल कलाम से अक्सर उसने अपने कई प्रोजेक्ट्स पर चर्चा की. इस प्रतिभाशाली युवा का कहना है कि विज्ञान सरलतम होना चाहिए, ताकि सामान्य व्यक्ति भी इसमें रस ले सके. जब मैं नासामें ख़ासा अनुभव हासिल कर लूँगा, तब भारत वापस लौटकर इसरोमें काम करना पसंद करूँगा. अरुण के अनुसार जिस प्रकार सबसे कम खर्च में भारत ने मंगल यान सफलतापूर्वक लॉन्च किया है, स्पष्ट है कि अगले सात-आठ वर्ष में भारत का ISROविश्व विज्ञान शक्ति का एक केन्द्र होगा.
पीवी अरुण की इस देशभक्ति को नासा ने स्वीकार किया और उसके साथ निर्धारित अवधि का अनुबंधकिया और यह सुविधा भी दी कि वे जब चाहें तब भारत लौट सकते हैं. जानी-मानी कम्प्यूटर वैज्ञानिक डॉ बारबरा लिस्कोव ने अरुण की इस भावना के बारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह को बताया तो उन्होंने तत्काल इसकी सूचना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी. मोदी ने अरुण को दस मिनट भेंट करने हेतु समय देकर प्रधानमंत्री निवास पर आमंत्रित किया, लेकिन यह मुलाक़ात आधे घंटे से भी अधिक चली. नरेंद्र मोदी ने पीवी अरुण को उनके उज्जवल भविष्य हेतु शुभकामनाएँ प्रदान कीं और कहा कि ISROके दरवाजे उनके लिए सदैव खुले हुए हैं...

ऐसे देशभक्त को मेरा सलाम... 

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