इस्लामिस्टों को कम्युनिस्ट क्यों अच्छे लगते हैं?
.
.
लड़ाई से पहले कई गतिविधियाँ होती है. उसमें एक है शत्रु भूमि पर अपने लिए कुछ अनुकूल मानसिकता तैयार करना. ताकि जब युद्ध की घोषणा हो तो सैनिकों को शत्रुभूमि में प्रतिकार कम हो. इस के लिए कुछ अग्रिम दस्ते भेजे जाते हैं जो शत्रु के लोगों में घुल मिल जाते हैं. या फिर स्थानिक हैं जिनको अपनी तरफ मोड़ा जाता है. ये लोग प्रस्थापित सत्ता के प्रति असंतोष पैदा कर देते हैं ताकि जब युद्ध शुरू हो तब स्थानिक प्रजा -कम से कम- प्रस्थापित सत्ता से सहकार्य तो न करें. इस से भी अधिक अपेक्षाएं होती हैं लेकिन यह तो कम से कम.
.
सत्ता की नींव कुरेद कुरेद कर खोखली करने में कम्युनिस्टों को महारत हासिल होती है. उनका एक ही नारा होता है – गरीबों का धन अमीरों की तिजोरियों में बंद है, आओ उन्हें तोड़ो, गरीबों में बांटो. बांटने के बाद नया कहाँ से लाये उसका उत्तर वे देते नहीं. रशिया और चाइना में कम्युनिज्म क्यों फेल हुआ उसका भी उत्तर उनके पास नहीं. खैर, मूल विषय से भटके नहीं, देखते हैं कि इस्लामिस्टों को कम्युनिस्ट क्यों अच्छे लगते हैं.
.
सामाजिक विषमता को टार्गेट कर के कम्युनिस्ट अपने विषैले प्रचार से प्रस्थापित सत्ता के विरोध में जनमत तैयार करते हैं. चूंकि कम्युनिस्ट धर्महीन कहलाते हैं, उन्हें परधर्म कहकर उनका मुकाबला नहीं किया जा सकता. उनकी एक विशेषता है कि वे शत्रु का बारीकी से अभ्यास करते हैं, धर्म की त्रुटियाँ या प्रचलित कुरीतियाँ इत्यादि के बारे में सामान्य आदमी से ज्यादा जानते हैं. वाद में काट देते हैं. इनका धर्म न होने से श्रद्धा के परिप्रेक्ष्य से इन पर पलटवार नहीं किया जा सकता. इस तरह वे जनसमुदाय को एकत्र रखनेवाली ताक़त जो कि धर्म है, उसकी दृढ़ जडें काट देते हैं. समाज एकसंध नहीं रहता, बैर भाव में बिखरे खंड खंड हो जाते हैं.
.
बिखरे समाज पर इस्लाम का खूंखार और सुगठित आक्रमण हो तो फिर प्रतिकार क्षीण पड़ जाता है. अगर यही इस्लाम सीधे धर्म पर आक्रमण करे तो धर्म के अनुयायी संगठित हो, लेकिन उन्हें बिखराने का काम यही कम्युनिस्ट कर चुके होते हैं.जो बिखरे हैं, उन्हें चुन चुन कर ख़त्म करना प्रमाण में आसान होता है.
.
कम्युनिस्टों के वैचारिक सामर्थ्य को इस्लाम पहचानता है. इसलिए किसी इस्लामिक राष्ट्र में उन्हें रहने नहीं दिया जाता. जहाँ इस्लामी फंडामेंटालिस्टों ने सत्ता पायी वहां पहले इनका इस्तेमाल किया, और सत्ता में आते ही सब से पहले इनका ही सफाया किया .
.
भारतीयों को अब सोचना है. वक़्त ज्यादा नहीं है. युवर टाइम डज नॉट स्टार्ट नॉऊ, इट हैज आलरेडी स्टार्टेड. लकीली, इट इज नॉट टू लेट . ACT NOW !
.
सत्ता की नींव कुरेद कुरेद कर खोखली करने में कम्युनिस्टों को महारत हासिल होती है. उनका एक ही नारा होता है – गरीबों का धन अमीरों की तिजोरियों में बंद है, आओ उन्हें तोड़ो, गरीबों में बांटो. बांटने के बाद नया कहाँ से लाये उसका उत्तर वे देते नहीं. रशिया और चाइना में कम्युनिज्म क्यों फेल हुआ उसका भी उत्तर उनके पास नहीं. खैर, मूल विषय से भटके नहीं, देखते हैं कि इस्लामिस्टों को कम्युनिस्ट क्यों अच्छे लगते हैं.
.
सामाजिक विषमता को टार्गेट कर के कम्युनिस्ट अपने विषैले प्रचार से प्रस्थापित सत्ता के विरोध में जनमत तैयार करते हैं. चूंकि कम्युनिस्ट धर्महीन कहलाते हैं, उन्हें परधर्म कहकर उनका मुकाबला नहीं किया जा सकता. उनकी एक विशेषता है कि वे शत्रु का बारीकी से अभ्यास करते हैं, धर्म की त्रुटियाँ या प्रचलित कुरीतियाँ इत्यादि के बारे में सामान्य आदमी से ज्यादा जानते हैं. वाद में काट देते हैं. इनका धर्म न होने से श्रद्धा के परिप्रेक्ष्य से इन पर पलटवार नहीं किया जा सकता. इस तरह वे जनसमुदाय को एकत्र रखनेवाली ताक़त जो कि धर्म है, उसकी दृढ़ जडें काट देते हैं. समाज एकसंध नहीं रहता, बैर भाव में बिखरे खंड खंड हो जाते हैं.
.
बिखरे समाज पर इस्लाम का खूंखार और सुगठित आक्रमण हो तो फिर प्रतिकार क्षीण पड़ जाता है. अगर यही इस्लाम सीधे धर्म पर आक्रमण करे तो धर्म के अनुयायी संगठित हो, लेकिन उन्हें बिखराने का काम यही कम्युनिस्ट कर चुके होते हैं.जो बिखरे हैं, उन्हें चुन चुन कर ख़त्म करना प्रमाण में आसान होता है.
.
कम्युनिस्टों के वैचारिक सामर्थ्य को इस्लाम पहचानता है. इसलिए किसी इस्लामिक राष्ट्र में उन्हें रहने नहीं दिया जाता. जहाँ इस्लामी फंडामेंटालिस्टों ने सत्ता पायी वहां पहले इनका इस्तेमाल किया, और सत्ता में आते ही सब से पहले इनका ही सफाया किया .
.
भारतीयों को अब सोचना है. वक़्त ज्यादा नहीं है. युवर टाइम डज नॉट स्टार्ट नॉऊ, इट हैज आलरेडी स्टार्टेड. लकीली, इट इज नॉट टू लेट . ACT NOW !
[बिना किसी काट-छाँट और बदलाव के, Shri Anand Rajadhyaksh (श्री आनंद राजाध्यक्ष जी) की फेसबुक वाल से साभार कॉपी]