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Channel: महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar)
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Be Practical and Dont be hypocrite AAP

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ईमानदारी का ढोल पीटना और ढोंग बन्द कीजिए AAP... 

फिलहाल ढुलमुल मनः स्थिति में, लेकिन दिल ही दिल में थोड़े से AAP की तरफ झुके हुए कुछ मित्र यह सोच रहे थे कि केजरीवाल ईमानदारी की मिसाल है. हालाँकि हम तो पहले दिन से ही जानते थे कि भारत की "वर्तमान व्यवस्था के तहत"कोई भी व्यक्ति ईमानदारी के साथ राजनीति कर ही नहीं सकता (Be Practical). लेकिन भोले-भाले कजरी भक्त इस बात को समझते नहीं थे. 


कल जिस तरह से AAP की फंडिंग उजागर हुई, और "आआपा"के प्रवक्ता सिर कटे मुर्गे की तरह इधर-उधर भागते दिखाई दिए, उससे यह बात सिद्ध हुई कि केजरीवाल के लिए पैसा जुटाने के पीछे कोई ना कोई शक्ति जरूर है. ज़ाहिर है कि जो भी व्यक्ति या संस्था मोटी राशि का चंदा देता है, उसके पीछे उसका स्वार्थ छिपा होता है... या तो उसे उस पार्टी से कोई काम करवाना होता है, अथवा पहले वाली पार्टी द्वारा रोके गए कामों को क्लीयरेंस दिलवाना होता है (Be Practical). तीसरा स्वार्थ "वैचारिक"होता है, यदि उस दानदाता(?) को कोई व्यक्ति या पार्टी वैचारिक स्तर पर फूटी आँख नहीं सुहाता तो वह संस्था परदे के पीछे से अपने किसी मोहरे को आगे करके उसे चंदा देती (या दिलवाती) है.


चुनावों में कार्यकर्ता, गाडियाँ, संसाधन, झण्डे-बैनर, पेट्रोल आदि में लगने वाला भारी-भरकम खर्च सामान्य जनता द्वारा दिए गए "चिड़िया के चुग्गे"बराबर डोनेशन से असंभव है (Be Practical). इसलिए स्वाभाविक है कि इस देश की हर राजनैतिक पार्टी "चोर"है. अब सवाल उठता है कि जब सभी चोर हैं (कोई जेबकतरा, कोई छोटा चोर, कोई डकैत) तो फिर हम उस पार्टी का समर्थन क्यों ना करें जो कम से कम "हिन्दुत्ववादी"होने का दिखावा तो करती है. दूसरी पार्टियाँ तो खुलेआम देशद्रोहियों का समर्थन कर रही हैं.

संक्षेप में तात्पर्य यह है कि, "..हे मेरे भोले (अथवा मूर्ख), (अथवा महासंत), (अथवा किताबी रूप से भीषण सैद्धांतिक) आआपा समर्थकों, इस बात को दिल से निकाल दो कि युगपुरुष राजा हरिश्चंद्र ईमानदार हैं, या वे भ्रष्टाचार रोकने में समर्थ हैं, क्योंकि भ्रष्टाचार भारत की जनता की रग-रग में समाया हुआ है, इसे सिर्फ थोड़ा कम किया जा सकता है, खत्म नहीं...". फिर हम उसे मौका क्यों ना दें जिसने कम से कम तीस-चालीस साल विश्वसनीय नौकरी की है... AAP की तरह नहीं, कि पहले नौकरी से भागे, फिर आंदोलन के बीच से भागे, फिर सरकार छोड़कर भागे... (Be Practical).... 


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AAP समर्थक इस बात को समझें, कि कथित ईमानदारी के जिस USP (Unique Selling Point) वाले खम्भे पर आआपा टिकी हुई थी, जब वही भरभराकर गिर गया, तो फिर सभी पार्टियों में अंतर क्या बचा?? इसलिए स्वाभाविक है कि समर्थन का आधार वैचारिक होगा... हमारा समर्थन "कथित हिंदूवादी"पार्टी को है, आप भी अलग कश्मीर का नारा लगाने वाले और सड़कों पर सरेआम किस करने वाले बुद्धिजीवियों की "कथित ईमानदार"पार्टी के समर्थन में रहिए... लेकिन प्लीज़ "ईमानदारी"का ढोंग बन्द कीजिए भाई...

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